आध्यात्मिक दीप जलाओ

अपने इस व्याख्यान-अंश में स्वामी विवेकानंद कह रहे हैं कि हमें ग्रंथों की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास कर लेने के बजाय अपने आत्मबल पर भरोसा करना चाहिए…

बहुत वर्ष पूर्व मैंने एक बड़े महात्मा के दर्शन किए। धार्मिक पुस्तकों पर चर्चा के बाद महात्मा ने मुझे मेज पर से एक किताब उठाने को कहा। उस किताब में यह लिखा था कि उस साल कितनी वर्षा होने वाली थी। महात्मा ने कहा, किताब लो और इसे निचोड़ो। जब तक पानी नहीं गिरता, यह किताब कोरी किताब ही है। उसी तरह जब तक तुम्हारा धर्म लक्ष्य तक नहीं पहुंचा देता, तब तक वह निरर्थक है। जो व्यक्ति धर्म के लिए केवल किताबें पढ़ता है, उसकी हालत तो कहानी वाले उस गधे की तरह है, जो पीठ पर चीनी का भारी बोझ ढोता है, लेकिन उसकी मिठास को नहीं जान पाता।

हमें लोगों को उनकी दैवी प्रकृति की याद दिलाना होगा। एक सिंहनी अपने नवजात शिशु को छोड़कर मर गई। सिंह का बच्चा मेमनों के झुंड में शामिल हो गया। वह अन्य भेड़ों की तरह घास खाता और मुंह से ‘में में’ की आवाज निकालता। एक दिन एक सिंह उधर से निकला। नए सिंह को देखकर मेमने भागे, तो वह सिंह भी भाग खड़ा हुआ। सिंह को बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक सिंह मेमना बना हुआ है। एक दिन नए सिंह ने सिंह-भेड़ को अकेला सोते पाया। उसने उसे जगाया और कहा, तुम सिंह हो। दूसरे सिंह ने जवाब दिया, नहीं। वह भेड़ों की तरह मिमियाने लगा। इस पर नए सिंह ने झील में उसका चेहरा दिखाया कि क्या यह मुझसे मिलता- जुलता नहीं है?

आखिर उसने स्वीकार कर लिया कि मैं सिंह हूं। तब उसने गरजने की कोशिश की। वह सिंह की ही भांति विकराल रूप से गरजने लगा। तब से उसका भेड़पन जाता रहा। मैं तो यही कहूंगा कि तुम सभी बलशाली सिंह हो। अगर तुम्हारे कमरे में अंधेरा है, तो तुम छाती पीट-पीट कर यह तो नहीं चिल्लाते कि हाय अंधेरा है अंधेरा है। अगर तुम उजाला चाहते हो, तो एक ही रास्ता है। तुम दिया जलाओ और अंधेरा अपने आप ही खत्म हो जाएगा। तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ही साधन है- तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक प्रदीप जलाओ, पाप और अपवित्रता का अंधकार स्वयं भाग जाएगा। तुम अपनी आत्मा के उदात्त रूप का चिंतन करो, गर्हित रूप का नहीं।

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